गोंड राजाओं के जमाने में कई जगह पानी के विभिन्न स्रोत बने और उनकी साज-सँभाल होती रही। मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात से होकर समुद्र में मिलने वाली तापी या ताप्ती नदी बैतूल जिले के मुलताई कस्बे के ताप्ती तालाब से निकली है। इस तालाब के पास वाला घाट देवगढ़ राज्य के गोंड राजाओं ने बनवाया था। बाकी के घाट भी चूने-पत्थर से गोंड राजाओं द्वारा बनवाए गए थे। असल में मुलताई का यह तालाब गोंड राजाओं द्वारा ही निर्मित है, जिसे बाद में भोंसलों ने सुधरवाया था। तापी का मूल होने की वजह से इस कस्बे का नाम मूलतापी पड़ा और धीर-धीरे यह मुलताई हो गया। स्कंध पुराण के तापी खण्ड और नागर खण्ड में इसका वर्णन मिलता है। मुलताई में 1923 में रेल लाइन आयी थी। इसके पहले आमला से रेल लाइन सीधी नागपुर जाती थी। 1956 में मध्यप्रदेश राज्य के गठन के समय मूलतापी कस्बे का नाम मूलताई कर दिया गया। कहा जाता है कि जब सृष्टि की रचना हुई तो वहाँ भीषण अंधकार था, जिसे मिटाने के लिए ब्रह्म देव ने मानस पुत्र सूर्य देव को जन्म दिया। लेकिन जब सूर्य के ताप से खुद ब्रह्मदेव व्याकुल होने लगे तो उन्होंने अपने शरीर से तापी गंगा को जन्म दिया। इसीलिए तापी को सूर्य पुत्री भी कहते हैं। तापी का जन्म स्थान तापन क्षेत्र बना और वहाँ तपतेश्वर लिंग स्थापित किया गया। इस लिंग पर बना तपतेश्वर महादेव का मंदिर 200 वर्ष पुराना माना जाता है। इसी तरह तापी देवी का चूने-पत्थर का बना मंदिर भी 200 वर्ष पुराना है। मुलताई में 1952-53 का अकाल आज भी याद किया जाता है। तब सुबह 4 बजे से पानी के लिए लाइन लगती थी और समाज के वरिष्ठ लोग पानी के पीपे भर-भरकर व्यवस्थित रूप से देने के लिए आते थे। उसी दौर में तापी के तालाब को साफ किया गया था और टनों गाद, मिट्टी, कचरा निकाला गया था। उस साल के सूखे में तालाब में पानी खत्म हो गया था तो उसकी तली में पाँच (कुछ लोगों के अनुसार सात) बावड़ियाँ मिली थीं जिनसे पूरे कस्बे को पानी दिया जाता था। वैसे तापी तालाब दो-तीन बार पूरी तरह से साफ किया गया है। इसी तरह आज के फव्वारा चौक के पास का चुनगच्ची कुआँ भी बेहद पुराना है। सूखे में जब तालाब का पानी खत्म हो जाता है तो इसी कुएँ से पानी लिया जाता है।
इस इलाके में 1892, 1905-06 में भी अकाल पड़े थे। 1905 में प्लेग पड़ा था और बीमारों को खिचड़ी बाँटी जाती थी। तब लोग गाँव छोड़कर भाग गए थे। बाद में सभी ने तय किया कि हर साल रामलीला की जाए और तब से अष्टमी से दशहरे तक रामलीला होती आ रही है।