मां सूर्यपुत्री की महिमा को समर्पित एक मार्मिक कहानी वह सुबह कभी तो आयेगी कहानी :- रामकिशोर पंवार रोंढ़ावाला उस रोज शहर से बड़े - बड़े सपनो को लेकर लौटा दीनू कल शाम गांव वालो से कह रहा था कि एक न एक दिन वह सुबह जरूर आएगी जब हमारे गांव की धरती और गांव की हर घर प्यास बुझ जाएगी। गांव के किसी दीनू की माँ उसे यूं अकेला न छोड़ कर जाएगी और न फिर गांव की कोई सुगरती की पानी लाते समय पांव फिसलने के चलते अकाल मौत होगी। ताप्ती मैया के किनारे बसे गांव की मिटट्ी की मिठास ही सागर के गागर में समाई खारेपन की जड़ो को काट देगी जिसके चलते सागर का पानी अपना खारेपन का स्वाद भूल कर बरसात की पहली बारीश की बुंदो से गांव की मिटट्ी से निकलने वाली सोंधी - सोंधी खुशबू का अहसास कराएगी। देख लेना एक न एक दिन वह सुबह जरूर आएगी जिस दिन नमक भी शक्कर से मीठा हो जाएगा न पानी की कमी होगी और न पानी को लेकर तीसरी लड़ाई होगी। गांव वाले अपने होनहार सपूत दीनू की बातों में ऐसे खो गए कि उन्हे पता ही नहीं चला कि कब मंशाराम की गोद में सोया उसका बेटा दीनू ऐसी नींद में सो गया जहां से उसे जगा पाना अब लोगो की बस की बात नहीं थी। पूरा गांव दीनू की असमय मौत और उसके सुंदर सुखद सपनो के बीच अचेतन अवस्था में चला गया था। आज जब गांव में कलैक्टर साहब दीनू के पिता मंशाराम को खुश खबरी देने के लिए पूरे लावा लश्कर के साथ पहुंचे थे। कलैक्टर साहब गांव वालो को बता रहे थे उसके गांव के सपूत के सुखद सपनो को साकार करने के लिए भारत सरकार ताप्ती नदी के किनारे बसे गांवो के आसपास की मिटट्ी के संरक्षण एवं उसके संग्रहण की एक बड़ी परियोजना लेकर आई है। ताप्ती नदी के दो किनारे बसे सौ से अधिक गांवो और दो सौ पचास किमी के क्षेत्र की मिटट्ी को समुद्र के पानी के खारेपन को दूर करने के लिए एक टेबलेट तृप्ति के रूप में बनाने के लिए कल कारखाना ही नही बड़ा औद्योगिक उपक्रम स्थापित कर रही है। गांव से अब मिटट्ी की एक टेबलेट सौ लीटर पानी के खारेपन को दूर करने में कारगर सिद्ध होगी। यह सब कुछ संभव हुआ है तो सिर्फ गांव के दीनू की बदौलत जो मरणोपरांत भारत सरकार द्वारा भारत रत्न के सम्मान से नवाजा गया है। दीनू की कहानी आज से तीस साल पहले सराड़ गांव से शुरू होती है। पुण्य सलिला सूर्यपुत्री ताप्ती के किनारे बसे बीस - तीस कच्ची मिटट्ी के घरो के गांव सराड़ में एक मात्र मकान गांव पटेल रामसखा का था। गांव पटेल पूरे गांव के सुख - दुख में हमेशा खड़ा रहता था इसलिए पूरा गांव उसकी कहीं बातो को मानता था। रामसखा पटेल पुरानी बातो को याद करते हुए उस रात की बात का सिलसिला शुरू करते हुए बताता है कि उस रात दीनू अपने गांव से बाहर देश जाने की तैयारी में लगा रहा। गांव छोड़ कर परदेश जाने वाला दीनू आसपास के सौ सवा सौ गांव का एक मात्र छोरा था। दीनू इस गांव का पहला बेटा था, इसलिए पूरा गांव उसकी बिदाई की तैयारी में लगा था। काली अमावस्य की अंधियारी रात को हर घर में मिटट्ी के तेल के लालटेन जल रहे थे। गांव के कुछ लोग गांव पटेल की चौपाल पर बैठ कर मंशाराम की किस्मत को लेकर चर्चा कर रहे थे। पूरी जिदंगी दुसरो के खेत - खलिहानो में हाथ मज़दूरी करने वाले मंशाराम का दीनू इकलौता बेटा था। आज शहर से अपनी पढ़ाई पूरी करके अपनी एक खोज को पूरी दुनिया के सामने प्रस्तुत करने उसे परदेश जाना पड़ रहा था। दुसरो से कर्जा लेकर मंशाराम ने अपने बेटे को पढ़ाया लिखाया और इस काबिल बनाया की वह अपने पैरो पर खड़ा हो सके। ऐसा करने के लिए उसकी पुश्तैनी गाय - बकरी तक बिक गई। गांव के लोग उसे ताना मारते थे कि देख मंशाराम तू जिस बेटे के लिए ऐसा कर रहा है अगर उसे शहर की हवा लग गई तो पूरी जिदंगी तू कर्जे में ही दब कर मर जाएगा ! मंशाराम ने गांव के लोगो की एक नही सुनी और रात दिन अपनी हडड्ी को तोड़ कर पसीना बहाते चला गया। आज उसका बेटा सरकारी खर्चे पर विदेश जा रहा था, बस इसी बात से मंशाराम की छाती छप्पन इंच की हो गई थी। आज उसने पूरी तीस साल में पहली बार ढंग की पगड़ी पहनी थी और बार - बार अपनी पगड़ी को वह हाथ लगा कर देखता कहीं उसकी पगड़ी उछल तो नहीं गई ! वैसे भी सराड़ छोटा सा गांव था। बीस तीस घरो की इस बस्ती में आदिवासी समाज के लोगो के घर सबसे अधिक थे जिसके चलते यहां के आदिवासियों का पूरा जीवन जंगल पर आश्रीत रहता था। जंगलो से चार - चुरनी - महुआ - गुल्ली - अचार और जंगली जड़ी - बुटी लाकर बेचने का काम करते थे। कुृछ लोग गांव से दूर शहरो में काम करने जाया करते थे। चैत्र माह में गेहूं कटाई के समय पूरा गांव खाली हो जाता था। ऐसे में गांव में सिर्फ बुढ़े - बुर्जग ही गांव के घरो की रखवाली के लिए बच जाते थे। मंशाराम के परिवार में उसकी बुढ़ी मां और काकी के अलावा उसकी पत्नि सुगरती थी , जो गांव पटेल के घर पर ठेका मजदूरी से काम करती चली आ रही थी। साल में दो बार गेहू और सोयाबीन की कटाई से वापस आने के बाद गांव की अधिकांश पुरूष जंगलो से सुखी लकडिय़ां बीन कर लाते थे जिसे गांव की महिलाए झुण्ड में सिर पर उल लकडिय़ो का गठठ बना कर पास के खेड़ी बाजार में ले जाकर बेचने का काम करते थी। मंशाराम का बेटा दीनानाथ जिसे पूरा गांव दीनू के नाम से पुकारते थे आज वही दीनू गांव की और स्वंय की पहचान को लेकर दुनिया के एक छोर से दुसरे छोर की ओर निकलने वाला था। उस बेचारे ने अपने बाप की गोदी के अलावा कोई दुसरी सवारी नहीं की थी लेकिन आज उसकी किस्मत तो देखिए उससे मिलने के लिए गांव की पगडंडी से डगमग हिचकोले खाती सरकारी लालबत्ती वाली कार आई थी। उस लाल बत्ती वाली कार में आये अफसर सर गांव के दीनू को सर दीनानाथ जी कह कर पुकार रहे थे। सराड़ के सरकारी स्कूल में पहली से तीसरी तक पढऩे के बाद शहर से पढ़ लिख कर वह गुजरात प्रदेश के कच्छ में कार्यरत देश की सबसे बड़ी कच्छ सौराष्ट्र स्थित भारत सरकार के वाटर साइंस एण्ड रिर्सच सेंटर में जूनियर साइंसटिस्ट के पद पर कार्यरत था। कुछ महीने पहले वह गांव आया था उसने गांव के किनारे बहने वाली ताप्ती नदी के किनारे पहाड़ी से लगी कुछ मात्रा में ऐसी मिटट्ी खोज निकाली जो पानी में नमक की मात्रा को कम करके उस पानी का स्वाद बदल सकती है। उसने ऐसा एक नही दस बार किया। वह अपने गांव में बिकने वाले खड़े नमक के टुकड़ो के घोल से खारे हुए पानी को मिटट्ी में घोलने के बाद उसे छान कर पीया तो उसे उस पानी में नमक का खारा पन कहीं से कहीं तक नही लगा। दीनू ने ताप्ती किनारे की उस मिटट्ी को लेकर किसी बड़ी खोज की तलाश में निकल पड़ा। दीनू बचपन से इस बात को जानता था कि गांव के अधिकांश लोगो पास के जंगल - पहाड़ी - ताप्ती नदी के किनारो से दोमटी मिटट्ी लेकर आते थे। उस मिटट्ी से गांव की महिलाए नहाने से लेकर सिर के बाल तक धोने का काम बरसो से करती चली आ रही थी। दीनू इस बात से हैरान था कि एक मिटट्ी का टुकड़ा चार लीटर नमक के पानी से खारापन दूर कर सकता है तब समुद्र के खारे पानी को मीठे पानी में बदलने की उसकी कोशिस एक न एक दिन जरूर रंग लाएगी। दीनू जब गांव से अपने कार्यस्थल साइंस सेंटर पहुंचा उस समय उसके पास पांच किलो वही करामती मिटट्ी थी। दीनू ने अपने संग लाई मिटट्ी से कच्छ के सागर के खारे पानी पर प्रयोग करके उसके खारे पन को दूर करने के एक नहीं दर्जनो प्रयोग किए और जब वह पूरी तरह से संतुष्ट हो गया तब उसने अपने सिनीयर को यह बात बताई। पहले तो उसके सिनीयर डाँ उप्पल दीनू की बातो को सुन कर आश्चर्य चकित रह गए लेकिन जब दीनू ने उन्हे ऐसा करके दिखाया तो डाँ उप्पल दांतो तले ऊंगलियां दबा बैठे। डाँ उप्पल की ही पहल का नजीता था कि दीनानाथ चौथे अंतराष्ट्रीय जल प्रदुषण एवं जल संरक्षण सेमीनार में अपनी खोज को लेकर भारत का प्रतिनिधित्व करके भारत का झण्डा गाडऩे जाने के लिए उसे सेमीनार में नामांकित करवा पाए। मिटट्ी से समूचे विश्व को आश्चर्यचकित कर देने वाली एक ऐसी खोज के साथ दीनानाथ अपने सिनीयर डाँ उप्पल के साथ शिकागो जा रहे थे। दीनानाथ की खोज को यदि शिकागो सम्मेलन में स्वीकार कर लिया गया तो ताप्ती के किनारे बसे एक गांव की मिटट्ी से पानी को लेकर होने वाली तीसरे विश्व युद्ध की त्रासदी से बचा जा सकता है। दीनू को इसी माह की आने वाली 20 तारीख को अपनी उस खोज को दुनिया भर के वैज्ञानिको के शिकागो में होने वाले अंतराष्ट्रीय सम्मेलन में रख कर उसका पैर्टन करवाना था. पूरी दुनिया को भले ही दीनू की इस खोज पर यकीन न हो लेकिन सच्चाई भी सोलह आने सच थी कि कच्छ प्रदेश में सागर के खारे पानी को मीठा करने वाले इस देहाती छोरे ने पूरी दुनिया में भारत का झण्डा ऊंचा कर देगा। कल दोपहर को देश भर के वैज्ञानिक एवं देश - प्रदेश की सरकार के मंत्री - संत्री तक गांव के छोरे दीनू उर्फ दीनानाथ को दिल्ली हवाई अडड्े से बिदाई देने के लिए जमा हो रहे थे. कुछ दिन पहले ही देश के महामहिम राष्ट्रपति इस गांव के होनहार छोरे के सम्मान में भोज देकर उसे सम्मानित कर चुके थे. दुनिया के पांच महासागर में से आधा पानी भी मीठा हो गया तो पूरी दुनिया को आने वाले हजारो सालो तक जल संकट से नहीं जुझना पड़ेगा. दीनू उर्फ दीनानाथ के इस काम से पूरा गांव भी झुम उठा था. भोर होने से पहले पनघट पर पानी की कतार में खड़ी मां को पानी के लिए तरसते देख दीनू ने पानी को लेकर कुछ करने का मन बना लिया था. दीनू के पाँव तब और डगमगा गये जब एक दिन उसकी मां सुगरती के निधन की $खबर मिली। एक दिन सुगरती भोर में गांव के पनघट पर पानी लेने गई थी पानी लेकर लौटते समय उसके पाँव फिसल गए जिसके चलते वह औंधे मुँह ऐसी गिरी की वह फिर दुबारा उठ नहीं सकी. मां की मौत की $खबर उसे इसलिए नहीं दी गई क्योकि उसकी खोज अंतिम चरण में थी. जब उसने अपनी खोज का नाम अपनी मां सुगरती के नाम पर अजर अमर करने के लिए तृप्ति के रूप में पैर्टन करके लिए पटल पर रखा तो शिकागो में मौजूद सवा लाख से अधिक पूरी दुनिया भर से आए वैज्ञानिक दोनो हाथो से तािलयां बजा कर दीनू के सम्मान में खड़ हो गए। दीनू को आखिर उस दर्दनाक हादसे और उसके बाद के हालातो के बारे में सब कुछ बता दिया गया. पिछले दो माह से गांव आया दीनू अपनी मां की याद में अपनी झोपड़ी के एक कोने में बैठा रो रहा अपनी मां की अस्थियो को अपने सीने लगाए बैठा था। उसने अपने कार्यस्थल पर लौटने के पहले गांव के करीब से बहने वाली पुण्य सलिला मां सूर्य पुत्री ताप्ती के शीतल जल में प्रवाहित करने पहुंचा तो उसे एक बार फिर याद आ गई माँ की जो वह कह रही थी कि बेटा दीनू यह मिटट्ी ही तुझे मेरे पास बार - बार बुलाएगी.... आज तीसरी बार जब कलैक्टर साहब उससे मिलने गांव आए थे तब वे उसे इस बात की ही जानकारी देने आए थे कि अब उसके गांव की मिटट्ी पूरी दुनियां में उसकी माँ सुगरती की एक नई पहचान बन कर जानी जाएगी। उस मिटट्ी से बनने वाली टेबलेट को तृप्ति नाम से पहचान मिली। दीनू की माँ सुगरती सर पर मटका रखी रेखाकिंत तस्वीर के साथ उस पर लिखा था मेरी खोज बनी मेरी माँ की एक पहचान । इस बार दीनू अपने संग अपने पिता को साथ ले जाना चाहता था लेकिन वह गांव की पंगडंडी में कहीं खो गई अपनी पत्नि सुगरती की यादो से दूर नहीं जाना चाहता था। दीनू अपने बुढ़े हो चुके पिता को अकेले छोड़ कर परदेश जाना नही चाहता था लेकिन जब गांव की पूरी पंचायत ने उसके पिता का ध्यान रखने की जवाबदेही ली तब वह गांव छोड़ कर जाने को तैयार हुआ। गांव को भी दीनू के दर्द की चिंता सताये जा रही थी। सुबह होते ही पूरा गांव गाजे - बाजे के साथ दीनू को बिदाई देने के लिए स्कूल मैदान में जमा हो चुका था। गांव के माता मैया के चबुतरे वाले मंदिर में मत्था टेकने के बाद वह गांव के सभी बड़े - बुर्जगो के पाँव छुकर आर्शीवाद ले रहा था। इस बीच जब वह अपने पिता से गले मिलने के लिए कदम बढ़ा ही रहा था तब उसका पांव एक दम लडखड़़ा गया। यदि उस समय पास खड़ा उसका पिता उसे संभाल नहीं पाता तो शायद वह भी जमीन पर धड़ाम से गिर जाता। अपने बेटे को बांहो में भरते ही मंशाराम की आंखे भर आई। उसने अपने दीनू के सिर पर हाथ फेरा और उसकी आंखो से झलकते आंसुओ को पोछते हुये कहा कि मुझे नहीं पूरे गांव को उस सुबह का इंतजार रहेगा जब गांव के पनघट पर पीने के पानी की न तो कतार होगी और न किसी बेटे की मां पानी के लिए बेमौत मरना पड़ेगा .....! पूरी दुनिया को तीसरे विश्व युद्ध से बचाने की दवा खोजने वाले दीनू को आज अपनी ही मां की मौत की दवा समय पर न खोज पाने का गम सता रहा था। जब सूरज आसमान पर पूरी तरह से बीचो- बीच आ चुका था। इस बीच गांव पर मंडराते उडन खटोले को देखने को जमा हो चुकी भीड़ भी बेकाबू होती जा रही थी। दर्जनो लाल -पीली - नीली बत्ती वाली कारो के काफिले के चलते उस गांव की धूल से सनी सड़क और खाली पड़ी जगह भर चुकी थी. हेलिकाप्टर में बैठने से पहले दीनू ने एक बार अपनी जन्मभूमि तथा पिता के पांव को छुआ उसके बाद दीनू नीले आकाश में कहीं ओझल हो गया। शिकागो में पूरी दुनिया के पांच हजार से अधिक वैज्ञानिक मंत्रमुग्ध होकर डाँ दीनानाथ ऊर्फ दीनू लम्बे सफर की कुछ भूली बिसरी यादो को जब लोगो को सुना रहा था तब उसकी बातो को सुन रहे अधिकांश लोगो की आंखो से आश्रुओ की जलधारा बहने लगी। शिकागो के उस सभाकक्ष में कुछ देर पहले मंगवाये सागर के खारे पानी में जैसे ही मिटट्ी की एक टेबलेट डाली गई और उसका कुछ देर बार परीक्षण किया गया तो सागर के पानी का खारापन समाप्त हो चुका था। लोग फटी आंखो से देख रहे थे कि एक मिटट्ी की टेबलेट भी सागर की गागर में समाये खारेपन को मीठे पानी में बदल सकती है तब सागर के पानी का उपयोग जन कल्याण में बड़े पैमाने पर किया जा सकता है। उस समय शिकागो में मौजूद लोग दीनानाथ से यह जानना चाहते थे कि आखिर वह मिटट्ी कहां की है ! तथा उसमें ऐसा क्या मिलाया कि महासागर का खारा पानी मीठा हो गया ! एक नहीं दस बार उस मिटट्ी एवं पानी का परीक्षण होने के बाद विश्व के पांचो अलग . अगल महासागरो के खारे पानी को मीठा करने वाली मिटट्ी में कहीं शक्कर जैसा कोई प्रदार्थ तो नहीं मिलाया गयाण् उस मिटट्ी को अच्छी तरह से जांचने एवं परखने के बाद उसे खाकर भी देखा गया लेकिन वह सिर्फ खारे पानी को ही मीठा कर पाईण् उसे मीठे पानी में मिला कर भी देखा गया लेकिन उसके स्वाद में कोई फर्क नहीं दिखाई दियाण् खारे पानी को मीठा करने वाली मिटट्ी का महासागरो के बीचो . बीच में जाकर भी परीक्षण किया गया लेकिन जितने क्षेत्र में मिटट्ी घुली उतने क्षेत्र का पानी मीठा हो चुका थाण् पूरे विश्व के वैज्ञानिको को दीन दयाल की एक और खोज को उजागर करने पर जोर का झटका लगा जब उसने यह कहा कि इस पानी को पीने के बाद सुगर की बीमारी तक ठीक हो जाती हैण् दो सप्ताह तक चली बहस के बाद आखिर पूरी दुनिया ने भारत के दीनदयाल के नाम पर उक्त खोज का पैर्टन तृप्ति के नाम से पंजीकृत कर लियाण् स्वदेश आने पर दीनदयाल ने अपनी उस खोज के बारे में जब लोगो को बताया तो वे सभी आश्चर्यचकित रह गयेण् सूरत में अरब सागर की कच्छ की खाड़ी में मिलने वाली सूर्य पुत्री पुण्य सलिला मां ताप्ती नदी के बीच प्रवाह में उक्त मिटट्ी सदियो से बहती चली आ रही है जिसकी मारक क्षमता खारे पानी को मीठा में बदल सकती हैण् दीन दयाल की इस खोज पर उसे देश भर के कई विश्व विद्यालयो ने डी लिट की उपाधी से अलंकृत कियाण् अमेरिकी सरकार ने अपने देश के सर्वोच्च सम्मान से अंलकृत कियाण् दीनू चाहता था कि भारत जो कि सदियो से गांवो का देश कहलाता चला आ रहा है उसके तीनो ओर विशाल सागर . महासागरो की लहरे उठती हैण् इन्ही लहरो का पानी यू टर्न करके गांवो की ओर यदि मोड़ दिया जाये तो कई प्यासे कंठो की प्यास बुझाई जा सकती हैण् खारे पानी को मीठा करने वाली मिटट्ी के 750 किलोमीटर लम्बे विशाल भण्डार से केवल ग्रीष्म ऋतु में ही संग्रहण किया जा सकता है तथा उस संग्रहित मिटट्ी को सागर के पानी में घोल कर उसे भी नहरो एवं नदियो की तरह गांवो की ओर बहाया जा सकता हैण् सागर के पानी के इस तरह से बहाव से बाढ़ जैसी आपदा होने का खतरा नहीं रहेगाण् ढलान से ऊंचाई की ओर सागर के पानी को ले जाना उतना कठीन काम नहीं जितना आज पानी के संकट पर सरकारी पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा हैण् गांव की गागर को सागर से भरने की इस अतिमहत्वाकांक्षा योजना को यदि मान लिया गया तो गांव की ही नही बल्कि जंगल . जमीन . पशु .पक्षी सभी के प्यासे कंठ तृप्त हो जायेगें लेकिन यह तभी संभव है तब तृप्ति को सरकार दिल और दिमाग से लेकर काम करेण् पूरी दुनिया में अपने नाम का डंका बजा कर पूरे तीन माह बाद अपने गांव लौट आया दीनू अपने बुढ़े पिता के चरणो में अपने सिर को रख कर सो गयाण् आज वह अपने पिता के चरणो में चैन की नींद सोया कि वह फिर उठ नहीं सकाण् अपने पिता के चरणो में अपने प्राण छोडऩे वाले दीनू को लोग भले ही भूलते जा रहे हो लेकिन यदि फिर कभी पानी को लेकर तीसरा विश्च युद्ध नहीं हुआ तो फिर तब बरबस दीनू की याद आयेगी क्योकि उसे मरते समय तक उस सुबह का इंतजार था जब देश . प्रदेश की सरकार उसे पैर्टन तृप्ति को स्वीकार कर गावो से लेकर शहरो तक को समुद्र के खारे पानी को मीठा करके पहुंचा कर लोगो की प्यासी कंठा को तृप्त कर देगीण् वह कहता था कि एक न एक दिन वह सुबह जरूर आयेगी
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