ताप्ती के सात कुण्ड मां सूर्यपुत्री ताप्ती जन्मस्थली मुलतपी में ताप्ती सरोवर एवं उससे लगे सीमा क्षेत्र में सात कुण्ड अलग - अलग नामों से बने हुए है तथा उनकी अलग - अलग कहानिंया है. यूं तो देखा जाए तो ताप्ती सरोवर में भी कुण्ड बने हुए है लेकिन धीरे -. धीरे वे या तो बुझ गए है या फिर उनका रूप स्वरूप बिगड गया है प्रमुख कुण्डो में
इस कुण्ड के बारे में आमतौर पर कहा जाता है कि यहां पर भगवान सूर्य ने स्वंय स्नान किया था. उसके बाद उन्होने बारी - बारी सभी कुण्डो की कथाओं एवं किवदंतियों को मूल स्वरूप देने के लिए सभी में स्नान एवं ध्यान किया था. सूर्य कुण्ड के बारे में कहा जाता है कि यहां पर भगवान सूर्य एक बार आकर अपना तेज को मां ताप्ती के जल में कम करते है. उनका तेज पानी के रूप में बहता हुआ निकल जाता है इसी कारण से पुण्य सलिला मां ताप्ती की जलधारा का वेग और तेज दोनो ही कोई तोड नहीं है.
अपने पिता के तेज प्रकोप से विचलीत पशु पक्षी नर किन्नर देव दानव की रक्षा करने के लिए मां ताप्ती अपने पिता के पसीने के तीन बुंद के रूप में आकाश धरती और पाताल पहुंची. ताप्ती की एक बुंद के रूप में ताप्ती कुण्ड में पहुंची जहां से वह गौमुख होती हुई आगे बह चली.
भगवान धर्मराज ने स्वंय इस कुण्ड में स्नान किया जिसके चलते यह धर्म कुण्ड कहलाता है. यहां पर स्नान एवं ध्यान करने वालो को धर्म लाभ मिलता है. हिन्दु रीति - रिवाजो के अनुसार तैतीस कोटी के देवी - देवताओं ने यहां पर ताप्ती के सभी कुण्डो में बारी - बारी स्नान - ध्यान किया था. सभी कुण्डो में ताप्ती सरोवर का ही पानी प्रभावित होता है.
पाप कुण्ड के बारे में कहा जाता है कि यहां पर सच्चे मन से पापी व्यक्ति मां सूर्यपुत्री का ध्यान करके स्नान करता है तो उसके पाप यहां पर धूल जाते है.
यहां पर देवऋषि नारद ने ताप्ती पुराण चोरी के चलते हुए कोढ के रोग से मुक्ति पाई थी. मुलताई रेल्वे स्टेशन के ठीक सामने आज की ईदगाह बीते इतिहास की नारद टेकडी है जहां पर नारद ने बारह वर्षो तक मां ताप्ती की तपस्या करके उनसे वर मांगा था कि उन्हे कोढ से मुक्ति के साथ - साथ ताप्ती पुराण की चोरी के अभिश्राप से मुक्ति दिलवाई जाए . नारद के स्नान के चलते इसे नारद कुण्ड कहते है शनि कुण्ड: -. न्याय के देवता भगवान शनि स्वंय अपनी बहन मां ताप्ती के घर पर आने के बाद इसी कुण्ड में स्नान करने के बाद उनसे मिलने गए थे. इस कुण्ड में मनुष्य को शनिदेव के कोप से शांती एवं शनिदशा से छुटकारा तथा लाभ की प्राप्ति होती है.
इस कुण्ड के बारे में कहा जाता है कि यह नागा सम्प्रदाय के लोगो के नागा बाबाओं का है जिन्होने यहां पर ताप्ती के किनारे रह कर अनेक कठोर तपस्या करके भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न किया था. इस कुण्ड के पास सफेद जनेउ धारी शिव की जलेरी शिवलिंग मौजूद है.